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श्री मद भागवत गीता से भगवान श्री कृष्ण जी के द्वारा कही गयी पंक्तियाँ :
यदा यदा ही धर्मस्य:, ग्लानीर भवति भारता:
अभ्युत्थानम अधर्मस्य:, तदात्मानम सृजाम्यहं|
भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कहे गए बहुत ही ज्ञान वर्धक श्लोक :
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति। शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥
उपरोक्त श्लोक का भावार्थ :
जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है ।
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् । असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥10.3॥
उपरोक्त श्लोक का भावार्थ :
जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि (अनादि उसको कहते हैं जो आदि रहित हो एवं सबका कारण हो) और लोकों का महान् ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरुष संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।